जयपुर: आज हम आपको जो कहानी बताने जा रहे है। वो काल्पनिक नहीं हकीकत है। जी हां राजस्थान में दौसा जिले के ग्राम चौंण्डियावास में 11 जनवरी 2009 को एक बूढ़ी मां का बेटा लापता हो गया था। जिसका नाम था प्रबोध माली, अपने बेटे प्रमोद को ढूंढने में आस-पास के गांव की कोई जगह नहीं छोड़ी थी। उस बूढ़ी मां ने अपने बेटे का करीब 4 साल इंतजार किया। लेकिन उस बूढ़ी मां की आंखें अपने बेटे की राह देखते देखते थक गई। जब उसके बेटे की घर लौटने की आशा टूटने लगी।
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जुर्म-ए-दास्ताना |
उस बूढ़ी मां ने ग्राम चौंण्डियावास में पंचायत बुलाई। पंचायत में अपने बेटे का गुमनामी होने का दर्द सुनाया। लेकिन पंचायत कोई नतीजे पर पहुंचती उससे पहले पता चला उसके बेटे की हत्या कर दी गई है। यह सुनकर बुढ़िया के सारे सपने टूट गये। क्योंकि प्रबोध उस बुढ़िया के बुढ़ापे का एकलौता सहारा था। पंचायत में आरोपी पकड़े गए और जुर्म कबूल कर लिया। इसके बाद पंचायत के वरिष्ठ लोगों ने मामले की शिकायत लालसोट पुलिस थाना में की, लेकिन कई दिन गुजर गए। पुलिस उस बूढ़ी मां के बेटे के हत्यारों को पकड़ नहीं पाई।
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माँ और बेटा |
जब पंचायत के लोगों की पुलिस से आस टूट गई। तो उन्होंने दौसा के स्थानीय निर्दलीय सांसद डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा का दरवाजा खटखटाया। डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने ग्राम चौंण्ड़ियास में आकर एक बार फिर पंचायत बुलाई। पंचायत में उन आरोपियों को पेश किया गया जिन्होंने अपना जुर्म कबूल किया था। स्थानीय सांसद के निर्देशों के अनुसार पुलिस ने उन आरोपियों को तुरंत गिरफ्तारी करके सलाखों के पीछे भेज दिया। और उसी गांव में सांसद डॉक्टर किरोडी लाल मीणा के कहने पर एक खेत की खुदाई करवाई गई। जिस खेत में उस बूढ़ी मां के बेटे का कंकाल मिला। इस कंकाल को देख कर लोग हैरान रह गए।
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Lalsot |
लालसोट पुलिस ने उस समय कंकाल और अन्य सैंपल जांच के लिए भेज दिया। जब तक मामला राजस्थान उच्च न्यायालय में पहुंच गया था। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी पुलिस सोती रही। उन आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत इकट्ठा नहीं कर पाई। जब तक वह बूढ़ी मां अपने बेटे को तो खो चुकी थी। लेकिन इंतजार था इंसाफ का, राजस्थान उच्च न्यायालय ने 3 जून 2011 को अपना फैसला सुनाते हुए कहा, पुलिस की नाकामी के कारण, सबूतों के अभाव में आरोपियों को बाय इज्जत भरी किया जाता है।
नोट-
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