करण और अर्जुन का अंतिम धर्म युद्ध - महाभारत

जयपुरजब महाभारत का अंतिम और निर्णायक युध्द कर्ण और अर्जुन के बीच हो रहा था। तो यह युध्द इतना विनाशकारी था, मानो युध्द के बहाने दौ शाकसात नील कंण्ड़ महादेव यानी भगवान शंकर युध्द कर रहे हो। अर्थात दौ महाकाल यानी मृत्यु के देवता यमराज युध्द लड़ रहा हो।

Karan and arjun yudh

इस युद्ध को देखकर भगवान कृष्ण बोले-

इस विनाशकारी युध्द में कर्ण की विरता और पराक्रम को देकर भगवान कृष्ण कहते है कि तु धन्य है कर्ण, ऐसा युध्दा ना तो अब से पहले किसी ने जन्म लिया है। और आने वाले युग में शायद कोई जन्म लेगा। क्योकि कर्ण ने अर्जुन के रथ को डाई कदम पीछे खिसका दिया था। अर्जुन ने कर्ण के रथ को सात कदम पीछे खिसकाया था।

भगवान कृष्ण से अर्जुन कहता है-

हे! केशव में मैने कर्ण के रथ को सात कदम पीछे धकेला है और कर्ण ने मेरे रथ को सिर्फ डाई कदम पीछे, फिर भी आप कर्ण की तारीफ क्यो कर रहे है।

भगवान कृष्ण कहते है कि-

हे! पार्थ कर्ण फिर कर्ण है वर्तमान समय में, इस से बड़कर कोई युध्दा नही है। में मानता हूँ कि तुमने कर्ण के रथ को सात कदम पीछे खिसकाया है। लेकिन फिर भी तुमसे बड़ा युध्दा कर्ण है। भगवान कृष्ण की यह बात सुनकर अर्जुन हट करने लगता है।

आप मुझे बताइये, कर्ण मुझ से बड़ा युद्धा क्यो है?- अर्जुन

भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है कि हे! पार्थ तुम जिस रथ पर हो वह रथ स्वंय शेषनाग के द्वरा पाताल लोक से बंधा है, और में स्वयं तीनो लोको का भार लेकर इस रथ पर बैठा हूँ, आपके रथ पर स्वयं महाबली हनुमान विराजमान होकर इस रथ की रक्षा कर रहे है। अगर फिर भी आपके रथ को डाई कदम पीछे धकेल रहा है तो वह साधारण युध्दा नही है, पार्थ! अगर तुम्हारा रथ आदा कदम पीछे और चला जाता तो मेरा स्थान रिक्त हो जाता आर्थात मुझे तिरलोक छोड़ना पड़ता।

भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है कि हे! पार्थ आज अगर तुम अपना धांण्डीव उठाकर और में अपना सुदर्शन चकर धारण करके दोनो मिलकर हम कर्ण से युध्द करे। तो भी कर्ण आज शायद हमसे हारेगा।
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