कहानी का परिचय – प्राचीन काल के त्रेता युग में भगवान वाल्मीकि द्वारा रची गई रामायण में राम सेतु पुल का जिक्र मिलता है। दावा किया जाता है कि आज से 9000 साल पहले इस धरती पर भगवान विष्णु के अवतार में भगवान राम ने जन्म लिया था। जिन्होंने माता सीता के याद में राम सेतु पुल का निर्माण किया था।
राम सेतु पुल रामेश्वर से लेकर श्रीलंका के मन्नार खाड़ी तक है। रामसेतु पुल की कुल लंबाई 38 किलोमीटर है। यह राम सेतु पुल उनकी सेना में नल और नील के हाथों से निर्माण किया गया था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची गई रामायण में राम सेतु पुल का निर्माण लंका पर चढ़ाई करने के लिए किया गया था। क्योंकि भगवान राम की सेना विशाल समुद्र को पार नहीं कर सकती थी। राम सेतु पुल हिंदुओं का सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है।
रामेश्वरम में राम सेतु पुल के तैरते पत्थरों का रहस्य–
रामेश्वर में भगवान राम के द्वारा रामसेतु पुल का निर्माण किया गया था। राम सेतु पुल के पत्थर आज भी पानी में क्यों नहीं बोलते हैं? और रामसेतु के पुल के पत्थर आज भी पानी पर तैरते हैं। प्राचीन काल से ही रामेश्वर का स्थान हिंदुओं में एक धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। आखिर लोगों के मन में सवाल उठता है कि आज से 9000 साल पहले इस राम सेतु पुल का निर्माण किसने किया होगा।
क्या उस जमाने में कोई वैज्ञानिक टेक्नोलॉजी थी। जो समय के साथ लुप्त हो गई। आखिर राम सेतु पुल के भारी भरकम पत्थर पानी पर क्यों तैरते हैं? यह सवाल लोगों को सदियों से परेशान करता रहा है। सोचने को मजबूर करता है। नासा के वैज्ञानिकों ने एक सेटेलाइट से तस्वीर खींची। जिसमें आज भी रामसेतु पुल समुद्र के अंदर मौजूद है। जो हिंद महासागर में से गुजरने वाले जहाजों को बाधित करता है। उनके आवागमन को रोकता है।
नासा के वैज्ञानिकों ने पत्थर के खोखले होने के दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह पत्थर किसी भी प्रकार से खोखले नहीं पाया है और आम पत्थरों की तरह ठोस और वजनदार है। इससे यह पता चलता है कि रामेश्वर में तैरते पत्थर का रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह लीला कुदरत या भगवान राम की हो सकती है।