जयपुर: आपने पुनर्जन्म की कहनियाँ तो बहुत सुनी होगी। लेकिन आज हम आपको भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक का नाती राजकुमार ट्रूएक बागचूंग की पुनर्जन्म कहानी के बारे में बताएँगे। जो हमको नालंदा विश्वविद्यालय का 824 साल पुराना इतिहास के बारे में बता रहा हैं। जब आप यह पुनर्जन्म की कहानी सुनोंंगेे, तो यह कहानी आपको हेरान कर देगी। सोचने पर मजबूर कर देगी।
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राजकुमार ट्रूएक बागचूंग की पुनर्जन्म कहानी |
जब वह पहली बार बोला तो नालंदा विश्व विद्यालय का नाम लिया। राजकुमार का यह शब्द सुनकर सब हेरान रह गए थे। जिस देश में हिंदी भाषा कोई नहीं जनता हो। ऐसे देश भूटान में राकुमार ट्रूएक बागचूंग हिंदी भाषा में कैसे बोला होगा। अर्थात सबके मन में यही सवाल था कि भूटान का यह राजकुमार जन्म लेने के पश्चात जब पहली बार बोला तो नालंदा क्यों कहा। जो भारत के विहार राज्य में स्थित है। भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक का कहना हैं कि जब राजकुमार एक साल था। तब वह नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में बाते करता था। नालंदा आने के लिए जिद करता था।
जब राजकुमार तीन का साल हुआ तो उसकी नानी महारानी धीरजा उसे भारत लेके आई। जैसे वह बालक नालंदा विश्वविद्यालय के उस मिट्टी के टीले पर पहुँचा तो वह सब कुछ पहचान गया। जो नालंदा विश्वविद्यालय के 824 साल पुराना इतिहास को दोहराने लगा। यह सब सुनकर बड़े बड़े विशेषज्ञ हैरान रह गए। राजकुमार धीरे धीरे अपना कमरा भी पहचान गया। जहाँ 824 साल पहले वह वहाँ रहकर पढ़ाई करता था। उसने भगवान बुद्ध की मुर्ति के बारे में बताया।
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नालंदा विश्वविद्यालय |
जो वर्तमान समय में मौजूद तो नही है। लेकिन इतिहास में भगवान बुद्ध की मूर्ति का जिक्र मिलता है। उस राजकुमार ने यह भी कहा जब वह नालंदा विश्वविद्यालय का हुआ करता था। तब नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे। भूटान के इस राजकुमार ने भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने ध्यान मुद्रा भी लगा के बताई जो उस समय में हुआ करती थी। जैसे जैसे वह नन्हा मुन्ना राजकुमार नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में बताता गया वैसा का वैसा 824 साल के पुराने इतिहास में मिलता गया। सभी विशेषज्ञ परेशान थे क्या इस कहानी को पुनर्जन्म नही तो आप क्या कहेंगे।
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