किसानों का असली दर्द यहां समझ में आएगा

जयपुर: आज हम आपको बताएंगे किसानों का असली दर्द, जी हां स्कूल प्रिंसिपल ने बहुत ही कड़े शब्दों में जब किसान की बेटी ख़ुशी से पिछले एक साल की फीस मांगी देने के लिए कहा तब ख़ुशी ने प्रिंसिपल मैडम कहा मेें आज घर जाकर पिताजी से कह दूंगी। घर जाते ही बेटी ने माँ से पूछा पिता जी कहाँ है। माँ ने कहा तुम्हारे पिताजी तो देर रात से ही खेत में है। बेटी दौड़ती हुई खेत में गई है। और सारी बात अपने पिता को बताती है। ख़ुशी का पिता बेटी को गोद मे उठाकर प्यार से कहता है। खुशी इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है। इसलिए तुम अपनी मैडम से कहना अगले हफ्ता सारी फीस आजाएगी।
किसानों का असली दर्द
किसानों का असली का अर्थ कोई नहीं समझता
 खुशी ने पिताजी से पूछा क्या हम मेले जाएंगे। बेटी की प्रशंसा में पिता ने खुश होकर कहा, हाँ हम मेले देखने जाएंगे और पकोड़े, बर्फी भी खाएंगे। ख़ुशी इस बात को सुनकर नाचने लगती है। तब वह घर आते वक्त रस्ते में अपनी सहेलियों को बताती है। इस बार मै अपने मम्मी पापा के साथ मेला देखने जाउंगी। पकोड़े बर्फी भी खाउंगी, ये बात पास में एक बुजुर्ग महिला सुन रही थी। वह खुशी से पूछती है बेटी ख़ुशी मेरे लिए मेले मे से क्या लाओगी। काकी हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है। में आपके लिए नए कपडे लाऊंगी। यह बात कहती हुई खुशी कर चली जाती है। अगली सुबह ख़ुशी स्कूल जाकर अपनी मैडम को बताती है। मैडम साहिबा इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है। इसलिए अगले हफ्त पुरी फसल बिक जाएगी। और मेरे पिताजी स्कूल आकर सारी फीस भर देंगें।

प्रिंसिपल : चुप करो तुम, एक साल से तुम बहाने बाजी कर रही हो। ख़ुशी चुप चाप क्लास में जाकर बैठ जाती है। और मेला घूमने के सपने देखने लगती है। तभी कुदरत का इंसाफ मंजूर नहीं था। इसलिए अचानक मौसम खराब हो गया और ओले गिरने लगे। तेज बारिश होने लगी और आसमान में बिजली कड़कने लगती है। पेड़ ऐसे हिलते है मानो अभी गिर जाएंगे। इस भयंकर आंधी तूफान को देख कर ख़ुशी एकदम से घबरा जाती है। ख़ुशी की आँखों मे आंसू भर आये। वह डर फिर सताने लगा जो डर सब खत्म होने का था। डर फसल बर्बाद होने का, डर फीस ना दे पाने का, स्कूल खत्म होने के बाद वो धीरे धीरे कांपती हुई घर की तरफ बढ़ने लगती है।

हुआ भी कुछ ऐसा ही किसान की पुरी फसल ओलावृष्टि से बर्बाद हो गई। इसी के साथ खुशी के सारे सपने टूट कर चूर हो गए। खुशी स्कूल में फीस जमा नही करने के कारण ताना सुनने लगी। उस छोटी सी बच्ची को मेला घुमने और बर्फी खाने की शौक मन में ही रह गई। छोटे किसान और मजदूरों के परिवार में जो दर्द है। उसे समझने में पूरी उम्र भी गुजर जाएगी। तो भी उनका असली दर्द कोई नहीं समझ सकता है।

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