जयपुर- Holi होली के त्योहार को प्राचीन काल से ही रिती रिवाज के तरीके से मनाते आ रहें हैं। इस त्योहार को मनाने के कारण कई पोराणिक कथा, दन्त कथा, धार्मिक आस्था आदि का जिक्र मिलता है।
धार्मिक आस्था-
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Holi |
हमारे धार्मिक ग्रंथों में होली मनाने का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि सत युग में राजा हिरणकस्यप राक्षस कुल में जन्म लिया था। हिरणकस्यप ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके कई शक्तियाँ व वरदान माँगे। जिसके पश्चात वह स्वयं को भगवान मानने लग गया। सभी देवी देवताओं का घोर विरोध करने लगा।
होली मनाने का कारण-
राजा हिरणकस्यप के एक पुत्र जन्मा,जिसका नाम प्रहलाद था। राजकुमार धीरे धीरे बड़ा हुआ। उसको शिक्षा के लिए आश्रम में गुरु पास भेज दिया गया। जैसे जैसे शिक्षा में निपुण होता गया और भगवान विष्णु के परम भक्त बन गया। शिक्षा के पश्चात घर वापस आया। तो अपने पुत्र से शिक्षा के बारे पुछा और प्रहलाद ने कहा कि मेरा सबसे प्रिय और भगवान विष्णु है। हिरणकस्यप नाराज हो गए। उसने कहा कि बेटा में ही इस संसार में भगवान हूँ। लेकिन प्रहलाद नहीं माना, उसको बार बार समझा ने का प्रयास किया। लेकिन प्रहलाद नहीं माना, अन्त में हिरणकस्यप ने प्रहलाद को मारने की सोची और आदेश दिया और कहा जाओ प्रहलाद को पहाड़ों पे से फेंका जाये। खम्भे गरम करवाकर चिपकाया, तेल गरम करके उसमें रखा गया था। लेकिन प्रहलाद नहीं मरा।
हिरणकस्यप की बहन होलीका-
होलीका को ऐसा वरदान प्राप्त था जिसे आग में नहीं जलती थी। लेकिन उसको वरदान प्राप्ति के समय देवताओं ने कहा था कि यदि इस वरदान का प्रयोग गलत हुआ तो यह शक्ति काम नहीं आयेगी। होलीका ने हिरणकस्यप से कहा कि भैया आप चिंता न करें। क्योंकि प्रहलाद का अंत में करूँगी।हिरणकस्यप कुश हुआ और होलीका प्रहलाद को मारने के लिए आग में लेकर बैठ गई। भगवान विष्णु की भक्ति के कारण प्रहलाद को तो आच भी नहीं। होलीका जलकर राख हो गई। इस घटना के बाद हम पीढ़ी दर पीढ़ी होली का त्योहार मनाते आ रहे हैं।
हम होली का त्योहार दो दिन तक मनाते हैं।