जानिए महाभारत के अश्वत्थामा 5000 साल से जिंदा रहने का रहस्य

रहस्य: अश्वत्थामा आज हम आपको मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर के नजदीक ऊंची पहाड़ी पर बना असीरगढ़ किले के बारे में बताएंगे। यह किला महाभारत काल में पांडवों के द्वारा बनाया गया था। इस किले में पांडवों के द्वारा बनाया गया एक शिव मंदिर भी है। लेकिन आज हम आपको असीरगढ़ के किले और भगवान शिव के मंदिर के ऐसे mystery के बारे में बताएंगे। जिसे सुनकर आप भय डरने लग जायेगा।

क्या कोई इंसान पिछले 5000 साल से जीवित रह सकता है। हमारे विज्ञान और तर्कशास्त्री कहते हैं कि किसी भी इंसान का किसी भी जीव जानवर का 5000 साल तक जीवित रहना संभव नहीं है। हम आपको हिंदुस्तान के मध्यप्रदेश में असीरगढ़ किले के बारे में बारे में बताने जा रहे हैं। यह किला के चारों तरफ से घने जंगल से गिरा हुआ है। गांव वाले दावा करते हैं कि खेती के कामकाज के सिलसिले में लोग इस किले के पास में से होकर गुजरते हैं।

Ashawathama, आचार्य द्रोण पुत्र अश्वत्थामा, असीरगढ़ का किला, भगवान शिव की पूजा से जुड़े रहस्य

जब उन में से किसी ने किसी को उस अनजान शख्स से सामना हो जाता है। असीरगढ़ किल के आसपास गांव वालों का कहना है कि जंगल में गाय-भैंस चहराते समय उस अनजान शख्स से गांव के कई लोगों का सामना हो चुका है। लोग दावा करते हैं कि जो अनजान शख्स हमें दिखाई दिया है। उसके सिर से खून बह रहा है और शरीर भारी है बाल लंबे लंबे हैं जैसे कोई पुराने युग का राक्षस हो। लेकिन आप यह सुनकर तब हैरान जाएंगे। जब उस अनजान शख्स के बारे में गांव वाले बताते हैं कि जिस भी व्यक्ति को वह अनजान शख्स दिखाई देता है। वह या तो बीमार हो जाता है या फिर अपनी आंखों की रोशनी गंवा देता है। कहने का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी बचे हुए जिंदगी के दिन चारपाई पर गुजारता है। गांव के लोग हमें बताते हैं कि यह कोई भूत प्रेत आत्मा नहीं है बल्कि जीता-जागता इंसान है। ऐसी कहानी का जिक्र महाभारत में अश्वत्थामा का मिलता है। गांव वालों के अनुसार यह इंसान कोई और नहीं है। जबकि महाभारत काल का अश्वत्थामा है।

पौराणिक कहानियों के अनुसार महाभारत में आचार्य द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा है। जिसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। लेकिन तब भगवान कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा की और अश्वत्थामा को सजा देने के लिए उसके सिर में से मणी निकलवा कर युगों युगों तक भटकने का श्राप दे दिया था। वैसे तो देश में कई जगह अश्वत्थामा की मौजूदगी का दवा मिलता है। लेकिन कई इतिहासकार मानते हैं कि अश्वत्थामा का असली ठिकाना असीरगढ़ का किला हैं। जब गांव वाले यह बताते हैं कि असीरगढ़ के किले में अश्वत्थामा आज भी भटकता है। तब इस केले का रहस्य और भी गहरा जाता है। गांववालों ने अश्वत्थामा का वेशभूषा और उसके चेहरे का जिक्र भी किया। लेकिन सवाल अश्वत्थामा का नहीं था। जबकि जिस भी इंसान को वह अनजान शख्स दिखाई देता है। वह या तो पागल हो जाता है या फिर लकवा मार जाता है। उसकी बची हुई जिंदगी भी चार पाई पर गुजरती है। गांव में एक बुजुर्ग व्यक्ति इस अनजान शख्स का जीता जागता सबूत है। वह कहता है कि मैं कुछ वर्ष पहले जंगल में गाय भैंस चरा रहा था। तब किसी इंसान ने मुझसे आकर मक्खन मांगा था। तब वह यह कहकर गायब हो गया था। जब मैं बेबस जिंदगी जी रहा हूं।
गांव के लोगों को असीरगढ़ के किले के आसपास किसी भारी-भरकम इंसान का आए दिन पैरों के निशान देखने को मिलते हैं। यहां के लोगों एक और कहानी बयां करते हैं कहते हैं कि जब अश्वत्थामा गांव में आता है तो आसपास की गाय भैंस दूध कम देती है। कहां जाता है कि गाय भैंसों के दूध अश्वथामा पी जाता है। असीरगढ़ के किले में भगवान शिव का मंदिर है। जहां अश्वत्थामा रोज भगवान शिव की पूजा करने आता है। मंदिर का पुजारी भी इस बात को बयां करता है कि हम शाम को शिवलिंग पर चढ़े फूलो को वह सभी प्रकार की पूजा प्रतिष्ठा की साफ सफाई करके मंदिर के दरवाजे बंद कर देते हैं। जब हम सुबह आकर मंदिर के दरवाजे खोलते हैं। तब कोई मंदिर में आकर ताजा फूल व शिव की पूजा अर्चना कर कर चला जाता है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि आखिर मंदिर के दरवाजे बंद होने के बाद भी कोई शख्स भगवान शिव की पूजा अंदर जाकर कैसे करता है। अर्थात शिवलिंग पर फूल कैसे चढ़ाकर चला जाता है। इस मौजूदगी से हमें यह पता लगता है कि आज भी अश्वत्थामा जिंदा है और असीरगढ़ की पहाड़ियों में भटकता है।
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