बदलते युग में जानिए कैसे लुप्त हो गई हमारी संस्कृति- बदलता भारत

मेरे परदादा संस्कृत और हिंदी जानते थे, माथे पे तिलक और सर पर पगड़ी बाँधते थे, फिर मेरे दादा जी का दौर आया, उन्होंने पगड़ी उतारी पर जनेऊ बचाया।

मेरे दादा जी अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते थे जानना तो दूर अंग्रेजी के नाम से कन्नी काटते थे, मेरे पिताजी को अंग्रेजी थोड़ी थोड़ी समझ में आई, कुछ खुद समझे, कुछ अर्थ चक्र ने समझाई।

पर वो अंग्रेजी का प्रयोग मज़बूरी में करते थे, यानि सभी सरकारी फार्म हिन्दी में ही भरते थे जनेऊ उनका भी अक्षुण्य था, पर संस्कृत का प्रयोग नगण्य था।


वही दौर था जब संस्कृत के साथ संस्कृति खो रही थी इसीलिए संस्कृत मृत भाषा घोषित हो रही थी, धीरे धीरे समय बदला और नया दौर आया, मैंने अंग्रेजी को पढ़ा ही नहीं, अच्छे से चबाया।

मैंने खुद को हिन्दी से अंग्रेजी में लिफ्ट किया, साथ ही जनेऊ को, पूजा घर में शिफ्ट किया, मै बेवजह ही दो चार वाक्य अंग्रेजी में झाड जाती हूँ शायद इसीलिए समाज में, पढ़ा लिखा कहलाती हूँ।

और तो और मैंने बदल लिए कई रिश्ते नाते हैं, मामा, चाचा, फूफा, अब अंकल नाम से जाने जाते हैं, मै टोन बदल कर वेद को वेदा, और राम को रामा कहती हूँ, और अपनी इस तथा कथित सफलता पर गर्वित रहती हूँ।

मेरे बच्चे और भी आगे जा रहे हैं, मैंने संस्कार चबाया था, वो अंग्रेजी में पचा रहे हैं यानि उन्हें दादी का मतलब ग्रैनी बताया जाता है रामा वाज ए हिन्दू गॉड गर्व से सिखाया जाता है।

जब श्रीमती जी उन्हें, पानी मतलब वाटर बताती हैं और अपनी इस प्रगति पर मंद मंद मुस्काती हैं जाने क्यों मेरे पूजा घर की जीर्ण जनेऊ चिल्लाती है और मंद मंद, कुछ मन्त्र यूँ ही बुदबुदाती है।

कहती है - ये विकास भारत को कहाँ ले जा रहा है संस्कार तो गल गए अब भाषा को भी पचा रहा है संस्कृत की तरह हिन्दी भी एक दिन मृत घोषित हो जाएगी शायद उस दिन भारत भूमि पूर्ण विकसित हो जाएगी। 

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